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भैरव तंत्र साधना

भैरव तंत्र साधना

भैरव तंत्र साधना- एक सामान्य व्यक्ति का जीवन तमाम तरह की बिध्न-बाधाओं से भरा रहता है। कुछ आपत्तियां तो कुछ विपत्तियों का सामना करते हुए गुजरती जिंदगी में कई मौके ऐसे भी आते हैं जब मुश्किलों का हल आसानी से नहीं निकल पाता है। खासकर तब जब शत्रु के द्वारा पैदा की गई समस्याएं आफत बनकर सामने आ जाती हैं। इनसे छुटकारा पाने के लिए किए जाने वाले उपायों में तंत्र साधना को काफी उपुक्त बताया गया है। इसका जीवन में विशिष्ट महत्व है और ये दिनचर्या को सहज-सरल बनाने में काफी मददगार साबित होते हैं। यह भैरव तंत्र साधना से संभव है, जिसमें भगवान शिव की अद्भुत और विपुल शक्ति को जागृत किया जाता है।

भैरव तंत्र साधना
भैरव तंत्र साधना

हिंदू शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव सर्वव्यापि हैं और संसार सत्व, रज और तम गुणों से मिलकर बनी हुई है। इनपर शिव का नियंत्रण रहता है। शिव में अगर आनंद और उग्रता का रूप है, तो वे सात्विक गुण से भी परिपूर्ण माने गए हैं। इन तीनों गुणों की अपार शक्ति उनके भैरव अवतार में होती है। इस बारे चली आ रही मान्यता के अनुसार भगवान शिव प्रदोषकाल में काल और कलह रूपी अंधकार से संसार की रक्षा के लिए भैरव रूप में प्रकट हुए थे। शिव महापुराण में बताया गया है- ‘‘भैरवः पूर्णरूपो हृशंकरः परात्मनः,मूढ़ास्ते वै न जानन्ति मोहिता शिवमायया।’’

इसे ही रुद्रावतार कहा गया है। रुद्रायमल तंत्र में कुल 64 भैरवों की चर्चा की गई है, लेकिन तंत्र साधन में भैरव के दस रूप ही ज्यादा उल्लेखित किए हैं और कहा गया है कि कोई भी महाविद्या तभी सिद्ध हो सकती है, यदि  भैरव के दस रूपों से संबंधित भैरव की सिद्धि नहीं कर ली जाए। हालंकि रूद्र भैरव के रूपो में 1. असितांग भैरव, 2. चण्ड भैरव, 3. रु-रु भैरव, 4. क्रोधोन्मत्त भैरव, 5. भयंकर भैरव, 6. कपाली भैरव, 7. भीषण भैरव और 8. संहार भैरव सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। अदि शंकराचार्य ने भी अपनी पुस्तक प्रपंञ्च-सार तंत्र में भी इन्हीं आठ भैरवों की चर्चा विशेष तौर पर की है।

इस कारण भैरव के सभी स्वरूपों की पूजा फलदायी मानी गई है। भैरव का शब्दिक अर्थ भरण-पोषण करने वाला होता है। वैसे इसे अकाल मौत से बचाने वाला भी माना गया है। इनमें मुख्य तौर पर तीन रूप इस प्रकार हैंः-

  • आनंद भैरवः यह रजो गुण अर्थात राजस्व को दर्शाता है और इनमें अर्थ, धर्म व काम की सिद्धियों के फल मिलते हैं। इनके साथ भैरवी की उपासना भी तांत्रिक साधना-सिद्धि के रूप में की जाती है।
  • काल भैरवः तम गुण वाले इस स्वरूप की साधना काल-भय, संकट, दुःख और शत्रुओं से मुक्ति के लिए की जाती है। इनकी मान्यता कल्याणकारी स्वरूप में है और इनमें काल को नियंत्रित करने की अद्भुत शक्ति होती है।
  • बटुक भैरवः- इन्हें सात्विक स्वरूप के तौर पर जाना जाता है, जिनकी उपासना से सभी तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति निरोगी जीवन व्यतीत करते हुए सुख-ऐश्वर्य, पद-प्रतिष्ठा और मान-सम्मान में वृद्धि प्राप्त करता है।

भैरव तंत्र साधना

भैरव तंत्र साधना के बारे में समझने से पहले तंत्र साधना के षट्कर्म के बारे में जानना जरूरी है, जिसमें शांति कर्म, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चारण और मारण प्रयोग होते हैं। इनके अतिरिक्त मोहनं, यक्षिणी साधना और रसायन क्रिया के प्रयोग भी किए जाते हैं। ये सभी कई देवी-देवताओं की उपासना, आराधना व साधना-सिद्धि से किए जाते हैं। इन्हीं में भैरव तंत्र साधना भी है, जिसे अघोरी श्मशान में विधि-विधान के साथ संपन्न करवाते हैं। हालांकि इसे कोई भी व्यक्ति सहजता के साथ कर सकता है।

ऐसे करें भैरव साधना

प्राचीन तांत्रिक ग्रंथों में भैरव की साधना के कई तरीके बताए गए हैं, लेकिन इसके श्रेष्ठ तरीके के के अनुसार आधी रात को निम्न नियमानुसार की जानी चाहिए।

  • भैरवी की पूजा के लिए आवश्यक पूजन सामग्रियों के साथ कुछ तांत्रिक भले ही शराब को नवैद्य के रूप में महत्व देते हों, लेकिन यह दिन के अनुसार बदलता रहता है। जैसे यदि रविवार को पूजा की जाए तो चावल-दूध की खीर, सोमवार को लड्डू, मंगलवार को घी-गुड़ की बनी सामग्री, बुधवार को दही-चिवड़ा, गुरुवार को बेसन के लड्डू या हलवा, शुक्रवार को भुने हुए चने और शनिवार को उड़द के बने पकौड़े या तली हुई खाने की नमकीन सामग्रियों का भोग लगाना चाहिए।
  • पूजन की तैयारी पूरी होने पर भैरव का आवाहन् के बताए गए मंत्र का उच्चारण करें और भैरवाय नमः बोलते हुए चंदन, अक्षत, फूल, सुपारी, दक्षिणा, नवैद्य आदि के साथ धूप और दीप से आरती करें। वह मंत्र हैः- आयाहि भगवान् रुद्रो भैरवः भैरवीपतेप्रसन्नोभव देवेश नमस्तुभ्यं कृपानिधि।
  • भैरव के आवहन् के बाद काल भैरव की उपासना करते हुए बताए गए शाबर मंत्र का जाप करें। मंत्र हैः- जय काली कंकाली महाकाली के पुत काल भैरव, हुक्म है- हाजिर रहे, मेरा कहा काज तुरंत करे, काला-भैरव किल-किल करके चली आई सवारी, इसी पल इसी घड़ी यही भगत रुके, ना रुके तो तो दुहाई काली माई की, दुहाई कामरू कामाक्षा की , गुरू गोरखनाथ बाबा की आण छु वाचापुरी!!
  • भैरवी साधना किसी भी रविवार, मंगलवार या कृष्ण पक्ष की अष्टमी को आरंभ किया जा सकता है। परिधान लाल वस्त्र का होना चाहिए।
  • साधना की शुरुआत करने से पहले अपने आसन के ठीक सामने भैरव का चित्र या मूर्ति को स्थापित किया जाना चाहिए। उसके सामने आपका दक्षिण दिशा की ओर होनी चाहिए। इनकी पूजा तेल का दीपक जलाकर की जाती है। इसके अतिरिक्त गुग्गल, धूप-अगरबत्ती जलाई जा सकती है।
  • भैरव पूजा के बाद अर्पित की हुई नवैद्य सामग्री को पूजा-स्थल से बाहर नहीं ले जाना चाहिए, बल्कि उसे प्रसाद के तौर पर उसी समय सेवन करना चाहिए।
  • मंत्र जाप के लिए काली हकीक के माला का प्रयोग होना चाहिए।
  • विभिन्न उपायों के कुछ मंत्र बहुत उपयोगी होते हैं, जिनका तुरंत लाभ मिलता है। इन्हीं में एक भय नाशक मंत्र इस प्रकार हैः-ऊँ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय भयं हन्! इस मंत्र का दक्षिण दिशा मुंह कर छह माला जाप करना चाहिए।
  • शत्रु नाशक मंत्रः ऊँ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय शत्रु नाशं कुरु! इस मंत्र को नारियल को काले कपड़े में लपेटकर भैरवी को अर्पित करना चाहिए। गुग्गल धूनी जलाते हुए पांच माला का जाप करना चाहिए।
  • जादू-टोना नाशक मंत्रः ऊँ भं भैरवाय अप्द्दुदारानाय तंत्र बाधाम नाशय नाशय! इस मंत्र का सात माल जाप करना चाहिए। इससे पहले आटे के तीन दिये जलाकर कपूर से आरती करनी चाहिए।
  • प्रतियोगिता-परीक्षा में सफलता का मंत्रः ऊँ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय साफल्यं देहि स्वाहाः! इस मंत्र का जाप बेसन का हलवा प्रसाद के रूप में भोग लगाने के बाद अखंड दीप जलाएं और उसे पूर्व की ओर मुख कर आठ माला का जाप करें।
  • बच्चों की सुरक्षा का मंत्रः ऊँ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय कुमारं रक्ष रक्ष! इस मंत्र का छह माला जाप मीठी रोटी का भोग लगाकर पश्चिम की ओर मुंह कर किया जाना चाहिए।
  • लंबी आयु मंत्रः ऊँ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय कुमारं रु रु स्वरूपाय स्वाहाः! इस मंत्र का पांच माला जाप पूरब की ओर मुख करना चाहिए। गरीबों को भोजन करवाएं।
  • बल-वृद्धि देने वाला मंत्रः ऊँ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय शौर्य प्रयच्छ! इस मंत्र का सात माला जाप काले कंबल पर बैठकर करना चाहिए।

गणेश वशीकरण

गणेश वशीकरण

हिंदू धर्म में महादेव शिव और माता पर्वती के पुत्र भगवान गणेश की पूजा, आराधना, साधना और उपासना की महत्ता से सभी परिचित हैं। उन्हें घर या कार्यालय के प्रवेश द्वार पर स्थापित करने के साथ-साथ पूजा घर में विशिष्टिता के साथ रखा जाता है। प्रत्येक अनुष्ठान के दौरान सबसे पहले उनकी पूजा की जाती है। यही वजह है कि हर शुभ कार्य के शुभारंभ को ‘श्रीगणेश’ कहकर संबोधित किया जाता है और ‘ ऊँ  गणेशाय नमः!’ मंत्र के जाप से एकाग्रता एवं कार्यारंभ की प्रेरणा मिलती है।

गणेश वशीकरण
गणेश वशीकरण

वैदिक ग्रंथों की मान्यताओं के अनुसार गणेश भगवान की विशिष्ट पूजा और उनके मंत्रों की साधना-सिद्धि से वशीकरण की अद्भुत क्षमता भी हासिल की जा सकती है, जिसका विभिन्न या कहें विशेष कार्यों के लिए उपयोग किया जाता है। आईए, एक नजर डालते हैं वशीकरण के लिए श्रीगणेश अर्थात गौरी पुत्र गजानन को प्रसन्न करने के लिए गणेश चतुर्थी के दिन से शुरू की जाने वाली पूजा के विधान और मंत्रों के बारे में, जो अचूक प्रभाव देते हैं।

वशीकरण की साधना

भगवान गणेश को भी रूप-सौंदर्य के था आकर्षित करने वाले ईष्टदेव रूप में पूजा की जाती है तथा उनमें आकर्षण या सम्मोहन शक्ति बढ़ाने की क्षमता है। और तो और श्रीगणेश को सभी सिद्धियों विधाता और वशीकरण के आधार देव माने जाते हैं। उनका वशीकरण का बहुपयोगी मंत्र हैः-

ऊँ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरद्र सर्व जनं मे वशमानाय स्वाहा!!

विधि-विधानः भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वीर के सामने आसन पर ब्रह्म मुहूर्त में पूर्व या पश्चिम की दिशा में बैठकर इस मंत्र के स्पष्ट उच्चारण के साथ उनका ध्यान करना चाहिए। उसके बाद निम्न मंत्र का पाठ करना चाहिए।

मंत्रः ऊँ अस्य हस्तिमुख गणेश मंत्रस्य श्री गणक ऋषिः गायत्री छंदः।

     श्री हस्तिमुख गणपति देवता ममाभीष्ट सिद्धयर्थे विनियोगः।। 

अर्थात् अपने दोनों हाथों में इक्षुदण्ड धारण किए हुए, उनमें पाश और अंकुश लिए हुए। एक हाथ में कमल धारण कर श्यामांगी को बगल में बिठाए हुए त्रिनेत्र रक्त वर्ण वाले गणपति का मैं ध्यान करता हूूं। ऐसी विनती की वाणी के साथ श्रीगणेश के समक्ष जल का छिड़काव करना चाहिए। उसके बाद निम्न मंत्र का पाठ करने से वशीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाई जा सकती है। वह मंत्र इस प्रकार हैः-

ऊँ गं अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः

ऊँ गं तर्जनीभ्यां नमः शिरसे स्वाहा

ऊँ गं मध्यमाभ्यां नमः शिखाये वषट्

ऊँ गं अनामिकभ्यां नमः कवचाय हुम्

ऊँ कनिष्ठिकाभ्यां नमः नैत्रत्रयाय वौषट्

ऊँ गं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः अस्त्राय फट्!!

इस हस्तिमुख गणपति के तीन लाख मंत्र का जाप दस दिनों के अनुष्ठान के दरम्यान पूर्ण करने के बाद दशांश हवन ईख और घी या तेल में तले हुए पुए से करने का विधान है। इस तरह से किए गए गणेश पूजन से वशीकरण की सिद्धि प्राप्त हो जाती है। उसके बाद वशीकरण संबंधी उपाय किए जा सकते हैं। वे इस प्रकार हैंः-

  • पानी में गुड़ मिलाकर बने शरबत से 444 बार वश मं किए जाने वाले व्यक्ति को ध्यान कर तर्पण करें।
  • घी, शहद और शक्कर यानि त्रिमधु को हवन सामग्री में मिलाकर हवन करने से वशीकरण का कार्य संपन्न होता है, तथा नारियल से हवन करने पर श्रेष्ठता और समृ़िद्ध की प्राप्ति होती है।
  • किसी स्त्री को वश में करने के लिए शहद में थोड़ा नमक मिलाकर हवन करने का अचूक लाभ मिलता है। इसके प्रयोग से पहले सामान्य गणेश पूजन आवश्यक है।
  • गणेश पूजन से ग्रहों की बिगड़ी हुई दशा को भी सही कर सकारात्मक प्रभाव देने जैसा बनाया जा सकता है।

गणेश मोहिनी वशीकरण

सम्मोहन या वशीकरण के लिए मेहिनी अर्थात प्रेम-भावना के लिए कई प्रचलित साधनाओं में एक गणेश मोहिनी वशीकरण भी है। इसके जरिए अगर प्रेमी-प्रमिकाएं अपने प्रिय या दंपति जीवनसाथी के प्रेमपाश में बंधे रहने की चाहत रखते हैं। यह एक तरह से यौनाकर्षण बढ़ाने वाले उपयों में से भी एक है। गणेश माहिनी वशीकरण के लिए एक साधना करनी होती है, जिसे घर में नहीं किया जाता है। इसके लिए शाबर मंत्र का 1100 बार आहूति के साथ जाप किया जाता है। वह मंत्र हैः-

ऊँ गणपति वीर वसे मसानेजो मैं मांगु सो तुम आन!

पांच लड्डू वा सिर सिंदूर त्रीभुवन मांगे चंपे के फूल!

अष्ट कुली नाग मोहा जो नाड़ी 72 कोठा मोहु!

इंदर की बैठी सभा मोहु आवती जावती ईस्त्री मोहु!

जाता जाता पुरुष मोहुडावा अंग वसे नरसिंह जीवने क्षेत्र पाला ये!

आवे मारकरनाता सो जावी हमारे पाउ पडंता!

गुरु की शक्ति हमारी भगती चलो मंत्र आदेश गुरुका!!

साधना-सिद्धिः इस मंत्र को साधने और सिद्धि के लिए किसी जंगल, बाग-बगीचे, नदी, तालाब के किनारे,  पार्क या घर के पिछवाड़े एकांत कोने में गणपति के पूजन की तैयारी करनी चाहिए। पूजन सामग्रियों में फूल, पान, नारियल गोला, सफेद चंदन, लाल चंदन, किशमिश, बादाम, काला तिल एवं हवन की सभी सामग्रियों को अनुपातिक मात्रा में मिलाया जाना चाहिए। साथ में भोग के लिए पांच लड्डू और सिंदूर की एक डिब्बी रखना जरूरी है। रात के नौ-दस बजे के बाद हवन की शुरूआत के बाद रात्री के एक बजे तक संपन्न कर लिया जाना चाहिए।

हवन की पूर्णहुति के बाद पूजन की सारी सामग्री वहीं छोड़ देना चाहिए और अभिमंत्रित सिंदूर की डिब्बी को साथ घर लाना चाहिए। वशीकरण के लिए उस सिंदूर का तिलक लगाकर वश में किए जाने वाले व्यक्ति के पास जाने से वह वशीभूत हो जाता है। इस साधना को समस्त नियमों का पालन कर किसी जानकार के सानिध्य और मार्गदर्शन में ही करना चाहिए।

तांत्रिक गणेश मंत्र

श्री गणेश के कुछ मंत्र इतने प्रभावशाली हैं कि उनसे एक सप्ताह के भीतर ही जीवन में चमत्कारी बदलाव आ जाता है। इन्हीं में एक तांत्रिक गणेश मंत्र इस प्रकार हैः-

ऊँ ग्लौम गौरी पुत्रवक्रतुंडगणपति गुरु गणेश।

ग्लौम गणपतिऋद्धि पतिसिद्धि पतिमेरे कर दूर क्लेश।।

विधि-विधानः इस मंत्र की साधान अलग ढंग से की जाती है तथा कुछ खास चीजों के इस्तेमाल और नियम पालन का ध्यान रखा जाता है। जैसे इस मंत्र की साधना के दिन अपने मन को नियंत्रित रखते हुए क्रोध, अपशब्द, कड़वी या व्यंग्यात्मक वाणी के बचने के साथ-साथ मांस-मदिरा, परस्त्री गमन आदि से दूर रहना होता है। सच्चे मन से प्रातः स्नानआदि के बाद भगवान शिव, पार्वती और गणेशजी की सामान्य ढंग से विधिवत पूजा करें। उसके बाद उपर दिए गए मंत्र का 108 बार उच्चारण के साथ जाप करें और यह संकल्प लें कि आपके द्वारा किए जाने वाले कार्य किसी को अहित पहुंचाने या किसी के मन को ठेस पहुंचाने वाले नहीं होंगे। सात दिनों तक ऐसा करने से सुख-समृद्धि की अनुभूति होगी और कार्यक्षेत्र में आने वाली समस्त बाधाएं हट जाएंगी। सहकर्मी, जीवनसााथी, मित्र आदि से हुए वैचारिक मतभेद दूर हो जाएंगे।

इच्छा पूर्ति

मनोकामना सिद्धि या मानेवांछित फल की कामना के लिए दिए गए मंत्र का विधिवत जाप करने से लाभ मिलता है। वह मंत्र हैः-

ऊँ गणपति वशे मशानजो फल मांगु देवे आन,

पांच लड्डू सेर सिंदूरभर आना आता आनंद,

भरपूर नेद्वतीमानफूले फलत जागे मर लियावे,

एक फूले हाथीजो तू माहन रहे,

सूबा बात साथ करो जाऊं तो मुट्ठी करो!!

विधिः इस मंत्र की सिद्धि के लिए किसी भी बुधवार को अनुष्ठान शुरू किया जा सकता है। देसी घी के ज्योत जलाई जाती है, श्रीगणेश की मूर्ति का पूजन किया जाता है और दो लड्डुओं का भोग लगाने के बाद पांच माला जाप किया जाता है। इस मंत्र का 21 दिनों तक जाप करते हुए गणेश भगवान से अपनी इच्छपूर्ति की मन्नत मांगी जाती है।

भूत प्रेत बाधा निवारण उपाय

भूत प्रेत बाधा निवारण उपाय

आज के समय में कुछ लोग भूत-प्रेत जेसी चीजों को बिकुल नहीं मानते खासकर वो लोग विज्ञान को ज्यादा मानते हो, लेकिन तथ्य यह है कि कुछ नकारात्मक शक्तियाँ होती है, और वर्तमान अवधि में, एक अभूतपूर्व गति पर ऐसी शक्तियों  की संख्या बढ़ रही है|यह कुछ लोगो के लिए आश्चर्यजनक विषय हो सकता है जो यह मानते है की यह युग ऋषि “कलियुग” है और इस युग में ऐसे विषयों की कोई मान्यता नहीं है, लेकिन मुझे लगता है कि नकारात्मक शक्तियां होती है और यह दिन ब दिन मजबूत होती जाती हैं।

मनुष्यकृत समाजों के साथ यह समस्या है जो कुछ भी वो समझते नहीं स्वीकार करना चाहते ही नहीं है। सत्य विज्ञान का मानना है कि ऐसी घटना के पीछे निहित कारणों का वर्णन होता है, और यह बिलकुल सहि नहीं है की अगर आप नकार्त्मकता को समझ नहीं पाते तो उसे स्वीकारते भी नहीं है |यह आपके लिए हानिकारक हो सकता है|

भूत प्रेत बाधा निवारण उपाय
भूत प्रेत बाधा निवारण उपाय

कोई भी व्यक्ति जो एक खुले दिमाग का नहीं नहीं है वह वैज्ञानिकताको नहीं समझ सकता, और उसे यह लेख पढ़ना बंद कर देना चाहिए क्यूकि यह आलेख केवल उन लोगों के लिए, जो यहाँ एक खुले दिमाग के साथ नकारात्मकता के मतलब को समझते हो और उससे बचने के उपाय खोज रहे हो। इस लेख में नकारात्मकता के लक्षण एवं उनसे बचने का उपचार बताया जाएगा| यह उपचार एवं लक्षण कुछ इस तरह के है –

ऊपरी बाधा के लक्षण –

नकारात्मक बाधा के लक्षण निम्नलिखित हैं। कृपया ध्यान दें कि उनमें से कुछ नकारात्मक बाधा के लक्षण नहीं हो सकते है लेकिन आप को जरूरत है एक संयुक्त दृष्टिकोण का पालन करने की। कुछ स्थितियों में शारीरिक लक्षण मानसिक शर्तों के साथ मेल नहीं खा रहे हो लेकिन मनोवैज्ञानिक शर्तों से मेल खाती है। कृपया इसे अन्यथा न लें, लेकिन कई रोगि जो कुछ मनोवैज्ञानिक उपचार पिछले कई वर्षों से ले रहे थे वह सब ठीक आध्यात्मिक उपचार के दौरान थे। कृपया निम्न लक्षण एक खुले दिमाग के साथ पढ़ें। एक व्यक्ति जो अनिष्ट शक्ति से आवेशित है कभी नहीं स्वीकारता कि वह अनिष्ट शक्ति से आवेशित है।

  • दोहराव माइग्रेन।
  • हाथ, आँखेंनीचे के पास सूजन या (गुर्दों का ख़राब होना) या सामान्य सूजन।
  • अचानक बिना कारण ठंड लगना।
  • अत्यंत कमजोर शरीर किसी भी रोग के बिना। (हड्डियों का फैला हुआ होना)
  • एलर्जी नकारात्मक बाधा के लक्षण नहीं हैं, लेकिन उनमें से कुछ नकारात्मक बाधा के निश्चित लक्षण हैं। असली लक्षण गर्दन के पीछे से शुरू होता है, लेकिन अनिष्ट शक्ति से आवेशित व्यक्ति इसे भूल जाता है।
  • जो बार-बार घटित बताई नहीं जा सकती और अपरिभाषित चिकित्सक समस्याए, उदाहरण के लिए माइग्रेन, थायराइड।
  • मंदी या चरम गतिविधि।
  • रंग में अचानक परिवर्तन। (काले या सफेद टोन)
  • चरक सहिंता के अनुसार (प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रन्थ), अलौकिक शक्ति, ऊर्जा, उत्साह, करिश्मा, स्मृति; कलात्मक, भाषण, और व्यक्ति में आध्यात्मिक क्षमताए आ जाति है। (अतीत जानने या हाल की घटनाओं के बारे में)। ऐसे लोगो को अपने भूतकाल या वर्तमान के बारे में कुछ पता नहीं होता और उनके साथ क्या चल रहा है यह भी वह नहीं जानते। वे केवल धटनाए जो एक वर्ष के लिए या एक महीने की अवधि के भीतर जगह ले रहे हैं सिर्फ उनका वर्णन कर सकते हैं।
  • अचानक अज्ञात बुखार, जो निश्चित अंतराल पर दोहराता है।
  • गंदे बाल रखना।
  • ऊँची आवाज में कुछ भी बोलना औरबिना वजह हँसते रहना| इस तरहके व्यक्ति हँसने के दौरान अपने कंधे हिलाता है और केवल हँसता जाता है मुस्कुराता नहीं है।
  • अचानक अपनी बातेढंग से बता नहीं पाते और बात के बीच में बेवजह रोने लगते है।
  • कभी कभी एक व्यक्ति के नियम अनुसार खाने से ज्यादा खाना खा लेना या फिर कुछ दिनों के लिए खाना ही ना खाना ।
  • बहुत ज्यादा नींद लेना या बिलकुल नींद ही ना लेना(अनिद्रा)|
  • लाल आँखें या असंतुलित आँखे हो जाना।
  • सिर रोटेशन में चलना। (शास्त्रीय चौकीलक्षण)
  • बिल्कुल सफाई से ना रहना | शरीर एवं आस –पास गन्दगी पसंद करना|
  • बहुत ज्यादा इत्र का प्रयोग करना एवं खुले बाल रखना (महिलाओं में) नकारात्मक शक्ति को दर्शता है।

भूत प्रेत बाधा उपचार –

  • उपर्युक्त कारणों को समाप्त करने का प्रयास करें।
  • कुंडली दोष भी नकारात्मक शक्तियों को इंगित करता है|अगर आपकेकर्मो के कारण अनिष्ट शक्ति आप पर आवेशित है तो उपचार भी आपको बचा नहीं सकती|
  • उपचार प्रत्येक व्यक्ति पर अपने प्रभाव नहीं दिखाती।
  • हमेशा अपने बाल बाँध कर रखे। खासकर महिलाएँ|
  • मंत्र या तांत्रिक मंत्रो का जाप ना करे और ना ही कभी उन्हें सुने।
  • नियमित रूप से एक पवित्र जगह पर जाएँ। आप के अंदर की आत्मा आपको इस अभ्यास को छोड़ने के लिए बाध्य करेगा।
  • बहुत ज्यादा इत्र का उपयोग न करें।
  • संभव हो तो हमेशा स्वच्छ रहने का प्रयास करें। अपने बाल और नाखून नियमित आधार पर काटते रहे।
  • शराब और नशीले पदार्थों से बचें।
  • नकारात्मक क्षेत्रों पर ना जाए और नकारात्मक स्थानों और नकारात्मक लोगों से बचें।
  • जयपुर में शिवदासपुरा के पास बड़ा “पदमपुरा” नामक एक मंदिर है। एक और मंदिर थाना गाज़ी में स्थित है। अलवर के पास। व्यक्तिगत रूप से इन मंदिरों का परीक्षण किया गया है। वहाँ पर कोई तंत्र मंत्र नहीं होते। कुछ भी पैसे के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता । अधिकांश लोग ठीक हो जाते है। और लोगों को जंजीरों में भी नहीं बांधते।
  • चौकिस एवं, पात्री का पालन ना करे और पितरो को भोग ना लगाए |भारत में कुछ लोग इन अनुष्ठानों का पालन करते है। वे प्रभावित हो सकती है। बस हर अमावस्या या कोई चंद्रमा के दिन पर गरीब लोगों को भोजन प्रदान कीजिए। यह पित्री रिनससे छुटकारा पाने के लिए सबसे आसान तरीका है।
  • कुछ लोग हैं, जिन्हें लगता है कि वहईश्वर एवं प्रेतों के माध्यम हैं ऐसे लोग वास्तव में सबसे बड़े मूर्ख हैं। उनके कार्य उनके जीवन को खतरे में डाल देते है। ऐसे लोग मृत्यु के बाद “प्रेत योनी ” से ग्रस्त हो जाते हैं। इसे लोग भूतो द्वारा पसंद किए जाते है और मृत्यु के बाद वह उन्हें उनकी दुनिया में ले जाया करते हैं। वे नबी नहीं हैं लेकिन वे अनिष्ट शक्ति से आवेशित होते हैं और उनके शरीर भूतों के लिए द्वार बन चुके होते है। इसलिए अपनाप को किसी का भी माध्यम ना समझे जब तक की आपको उस विषय के बारे में पूरी जानकारी ना हो ,नहीं तो यह आपके जीवन के लिएहानिकारक हो सकता है|

तो यह थे भूत बाधा के कुछ निम्नलिखित लक्षण एवं उपचार जिससे हम पता लगा सकते है की किसी व्यक्ति पर अनिष्ट शक्ति आवेशित है या नहीं और अगर है तो उसको मिटाने के उपाय क्या है |