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भैरव तंत्र साधना

भैरव तंत्र साधना

भैरव तंत्र साधना- एक सामान्य व्यक्ति का जीवन तमाम तरह की बिध्न-बाधाओं से भरा रहता है। कुछ आपत्तियां तो कुछ विपत्तियों का सामना करते हुए गुजरती जिंदगी में कई मौके ऐसे भी आते हैं जब मुश्किलों का हल आसानी से नहीं निकल पाता है। खासकर तब जब शत्रु के द्वारा पैदा की गई समस्याएं आफत बनकर सामने आ जाती हैं। इनसे छुटकारा पाने के लिए किए जाने वाले उपायों में तंत्र साधना को काफी उपुक्त बताया गया है। इसका जीवन में विशिष्ट महत्व है और ये दिनचर्या को सहज-सरल बनाने में काफी मददगार साबित होते हैं। यह भैरव तंत्र साधना से संभव है, जिसमें भगवान शिव की अद्भुत और विपुल शक्ति को जागृत किया जाता है।

भैरव तंत्र साधना
भैरव तंत्र साधना

हिंदू शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव सर्वव्यापि हैं और संसार सत्व, रज और तम गुणों से मिलकर बनी हुई है। इनपर शिव का नियंत्रण रहता है। शिव में अगर आनंद और उग्रता का रूप है, तो वे सात्विक गुण से भी परिपूर्ण माने गए हैं। इन तीनों गुणों की अपार शक्ति उनके भैरव अवतार में होती है। इस बारे चली आ रही मान्यता के अनुसार भगवान शिव प्रदोषकाल में काल और कलह रूपी अंधकार से संसार की रक्षा के लिए भैरव रूप में प्रकट हुए थे। शिव महापुराण में बताया गया है- ‘‘भैरवः पूर्णरूपो हृशंकरः परात्मनः,मूढ़ास्ते वै न जानन्ति मोहिता शिवमायया।’’

इसे ही रुद्रावतार कहा गया है। रुद्रायमल तंत्र में कुल 64 भैरवों की चर्चा की गई है, लेकिन तंत्र साधन में भैरव के दस रूप ही ज्यादा उल्लेखित किए हैं और कहा गया है कि कोई भी महाविद्या तभी सिद्ध हो सकती है, यदि  भैरव के दस रूपों से संबंधित भैरव की सिद्धि नहीं कर ली जाए। हालंकि रूद्र भैरव के रूपो में 1. असितांग भैरव, 2. चण्ड भैरव, 3. रु-रु भैरव, 4. क्रोधोन्मत्त भैरव, 5. भयंकर भैरव, 6. कपाली भैरव, 7. भीषण भैरव और 8. संहार भैरव सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। अदि शंकराचार्य ने भी अपनी पुस्तक प्रपंञ्च-सार तंत्र में भी इन्हीं आठ भैरवों की चर्चा विशेष तौर पर की है।

इस कारण भैरव के सभी स्वरूपों की पूजा फलदायी मानी गई है। भैरव का शब्दिक अर्थ भरण-पोषण करने वाला होता है। वैसे इसे अकाल मौत से बचाने वाला भी माना गया है। इनमें मुख्य तौर पर तीन रूप इस प्रकार हैंः-

  • आनंद भैरवः यह रजो गुण अर्थात राजस्व को दर्शाता है और इनमें अर्थ, धर्म व काम की सिद्धियों के फल मिलते हैं। इनके साथ भैरवी की उपासना भी तांत्रिक साधना-सिद्धि के रूप में की जाती है।
  • काल भैरवः तम गुण वाले इस स्वरूप की साधना काल-भय, संकट, दुःख और शत्रुओं से मुक्ति के लिए की जाती है। इनकी मान्यता कल्याणकारी स्वरूप में है और इनमें काल को नियंत्रित करने की अद्भुत शक्ति होती है।
  • बटुक भैरवः- इन्हें सात्विक स्वरूप के तौर पर जाना जाता है, जिनकी उपासना से सभी तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति निरोगी जीवन व्यतीत करते हुए सुख-ऐश्वर्य, पद-प्रतिष्ठा और मान-सम्मान में वृद्धि प्राप्त करता है।

भैरव तंत्र साधना

भैरव तंत्र साधना के बारे में समझने से पहले तंत्र साधना के षट्कर्म के बारे में जानना जरूरी है, जिसमें शांति कर्म, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चारण और मारण प्रयोग होते हैं। इनके अतिरिक्त मोहनं, यक्षिणी साधना और रसायन क्रिया के प्रयोग भी किए जाते हैं। ये सभी कई देवी-देवताओं की उपासना, आराधना व साधना-सिद्धि से किए जाते हैं। इन्हीं में भैरव तंत्र साधना भी है, जिसे अघोरी श्मशान में विधि-विधान के साथ संपन्न करवाते हैं। हालांकि इसे कोई भी व्यक्ति सहजता के साथ कर सकता है।

ऐसे करें भैरव साधना

प्राचीन तांत्रिक ग्रंथों में भैरव की साधना के कई तरीके बताए गए हैं, लेकिन इसके श्रेष्ठ तरीके के के अनुसार आधी रात को निम्न नियमानुसार की जानी चाहिए।

  • भैरवी की पूजा के लिए आवश्यक पूजन सामग्रियों के साथ कुछ तांत्रिक भले ही शराब को नवैद्य के रूप में महत्व देते हों, लेकिन यह दिन के अनुसार बदलता रहता है। जैसे यदि रविवार को पूजा की जाए तो चावल-दूध की खीर, सोमवार को लड्डू, मंगलवार को घी-गुड़ की बनी सामग्री, बुधवार को दही-चिवड़ा, गुरुवार को बेसन के लड्डू या हलवा, शुक्रवार को भुने हुए चने और शनिवार को उड़द के बने पकौड़े या तली हुई खाने की नमकीन सामग्रियों का भोग लगाना चाहिए।
  • पूजन की तैयारी पूरी होने पर भैरव का आवाहन् के बताए गए मंत्र का उच्चारण करें और भैरवाय नमः बोलते हुए चंदन, अक्षत, फूल, सुपारी, दक्षिणा, नवैद्य आदि के साथ धूप और दीप से आरती करें। वह मंत्र हैः- आयाहि भगवान् रुद्रो भैरवः भैरवीपतेप्रसन्नोभव देवेश नमस्तुभ्यं कृपानिधि।
  • भैरव के आवहन् के बाद काल भैरव की उपासना करते हुए बताए गए शाबर मंत्र का जाप करें। मंत्र हैः- जय काली कंकाली महाकाली के पुत काल भैरव, हुक्म है- हाजिर रहे, मेरा कहा काज तुरंत करे, काला-भैरव किल-किल करके चली आई सवारी, इसी पल इसी घड़ी यही भगत रुके, ना रुके तो तो दुहाई काली माई की, दुहाई कामरू कामाक्षा की , गुरू गोरखनाथ बाबा की आण छु वाचापुरी!!
  • भैरवी साधना किसी भी रविवार, मंगलवार या कृष्ण पक्ष की अष्टमी को आरंभ किया जा सकता है। परिधान लाल वस्त्र का होना चाहिए।
  • साधना की शुरुआत करने से पहले अपने आसन के ठीक सामने भैरव का चित्र या मूर्ति को स्थापित किया जाना चाहिए। उसके सामने आपका दक्षिण दिशा की ओर होनी चाहिए। इनकी पूजा तेल का दीपक जलाकर की जाती है। इसके अतिरिक्त गुग्गल, धूप-अगरबत्ती जलाई जा सकती है।
  • भैरव पूजा के बाद अर्पित की हुई नवैद्य सामग्री को पूजा-स्थल से बाहर नहीं ले जाना चाहिए, बल्कि उसे प्रसाद के तौर पर उसी समय सेवन करना चाहिए।
  • मंत्र जाप के लिए काली हकीक के माला का प्रयोग होना चाहिए।
  • विभिन्न उपायों के कुछ मंत्र बहुत उपयोगी होते हैं, जिनका तुरंत लाभ मिलता है। इन्हीं में एक भय नाशक मंत्र इस प्रकार हैः-ऊँ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय भयं हन्! इस मंत्र का दक्षिण दिशा मुंह कर छह माला जाप करना चाहिए।
  • शत्रु नाशक मंत्रः ऊँ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय शत्रु नाशं कुरु! इस मंत्र को नारियल को काले कपड़े में लपेटकर भैरवी को अर्पित करना चाहिए। गुग्गल धूनी जलाते हुए पांच माला का जाप करना चाहिए।
  • जादू-टोना नाशक मंत्रः ऊँ भं भैरवाय अप्द्दुदारानाय तंत्र बाधाम नाशय नाशय! इस मंत्र का सात माल जाप करना चाहिए। इससे पहले आटे के तीन दिये जलाकर कपूर से आरती करनी चाहिए।
  • प्रतियोगिता-परीक्षा में सफलता का मंत्रः ऊँ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय साफल्यं देहि स्वाहाः! इस मंत्र का जाप बेसन का हलवा प्रसाद के रूप में भोग लगाने के बाद अखंड दीप जलाएं और उसे पूर्व की ओर मुख कर आठ माला का जाप करें।
  • बच्चों की सुरक्षा का मंत्रः ऊँ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय कुमारं रक्ष रक्ष! इस मंत्र का छह माला जाप मीठी रोटी का भोग लगाकर पश्चिम की ओर मुंह कर किया जाना चाहिए।
  • लंबी आयु मंत्रः ऊँ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय कुमारं रु रु स्वरूपाय स्वाहाः! इस मंत्र का पांच माला जाप पूरब की ओर मुख करना चाहिए। गरीबों को भोजन करवाएं।
  • बल-वृद्धि देने वाला मंत्रः ऊँ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय शौर्य प्रयच्छ! इस मंत्र का सात माला जाप काले कंबल पर बैठकर करना चाहिए।

दत्तात्रेय तंत्र वशीकरण प्रयोग

दत्तात्रेय तंत्र वशीकरण प्रयोग

दत्तात्रेय तंत्र वशीकरण प्रयोग- प्रभु दत्तात्रेय का रूप साक्षात भगवान शंकर से मिलता है। महाराज दत्तात्रेय की आराधना बहुत ही फलदायक औरशीघ्र फल देने वाली है। महाराज दत्तात्रेय तीनो ईश्वरीय शक्तियो से समाहित आजन्म ब्रह्मचारी, अवधूत, और दिगम्बर रहे थे, वे कण–कण मेंसमाए हैं और अपने भक्तों की किसी भी प्रकार के संकट में बहुत जल्दी सुध लेते हैं, यदि मन, कर्म और वाणी से महाराज दत्तात्रेय की उपासना कीजाए तो किसी भी कठिनाई का बहुत ही सरलता से अंत हो जाता है।

दत्तात्रोय तंत्र वशीकरण प्रयोग
दत्तात्रोय तंत्र वशीकरण प्रयोग

भगवान दत्तात्रेय की उपासना विधि

श्री दत्तात्रेय जी की मूर्ति, चित्र अथवा यंत्र को लाल कपडे पर स्थापित करें और चन्दन लगाकर, फूल चढाकर, नैवेद्य चढाकर धूप की धूनी देकर, आरती उतारकर पूजा करें। पूजा करते समय पहले स्तोत्र को ध्यान से पढ़ें और फिर मन्त्र का जाप करें। उनकी उपासना का प्रभाव तुरंत ही प्रारंभ होजाता है और वे शीघ्र ही भक्त को अपनी उपस्थिति का आभास देने लगते हैं। भक्तों को प्रायः साधना के समय अचानक स्फूर्ति के आने से उनकीउपस्थिति का आभास होता है। भगवान दत्तात्रेय बड़ हीे दयालू और सरल हैं, जब भी भक्त संकट में पड़ने पर उन्हें सहायता के लिए पुकारतें हैं वे तुरंतही सहायता के लिये अपनी शक्ति को भेजते है।

भगवान दत्तात्रेय की उपासना में विनियोग विधि

पूजा की शुरूआत में भगवान श्री दत्तात्रेय का आवाहन किया जाता है। इसके लिए एक साफ बर्तन में पानी लेकर पास में रखें और बायें हाथ में एकफूल और चावल के दाने लेकर इस प्रकार से विनियोग करें –

‘‘ष्ऊँ अस्य श्री दत्तात्रेय स्तोत्र मंत्रस्य भगवान नारद ऋषिरू अनुष्टुप छन्दरू,श्री दत्त परमात्मा देवतारू, श्री दत्त प्रीत्यर्थे जपे विनोयोगरूष’’

यह उच्चारण करके दाहिने हाथ में फूल और चावल लेकर भगवान दत्तात्रेय की मूर्ति, चित्र या यंत्र पर सिर को झुकाकर चढ़ाएँ। इसके पश्चात हाथों कोपानी से साफ कर लें और दोनों हाथों को जोडकर उनके लिये जप स्तुति करें। जो इस प्रकार से है –

‘‘ष्जटाधरं पाण्डुरंगं शूलहस्तं कृपानिधिम। सर्व रोग हरं देव,दत्तात्रेयमहं भज’’

अपने भक्तों पर आने वाले संकटों को दत्त भगवान तुरंत दूर करते हैं और उनके जीवन में खुशहाली लाते हैं। दत्तात्रेय जयंती के दिन इन मंत्रों कास्फटिक की माला से हर रोज 108 बार मंत्र जाप करने से मनुष्य जीवन के समस्त कष्ट और संकट शीघ्र ही दूर  हो जाते हैं।

तांत्रोक्त दत्तात्रेय मंत्र–   ॐ द्रां दत्तात्रेयाय नमः

यह भगवान दत्तात्रेय का प्रिय दत्त गायत्री मंत्र है –

‘‘ॐ दिगंबराय विद्महे योगीश्रारय् धीमही तन्नो दतरू प्रचोदयात’’

एक समय ऐसा था, जब वैदिक कर्मों का, धर्म का तथा वर्णव्यवस्था का लोप हो गया था। उस समय भगवान दत्तात्रेय ही थे, जिन्होंने इन सबकापुनरूद्धार किया था।

दत्तात्रेय तंत्र में यह जिक्र भी आता है कि भगवान् शिव ने स्वयं ऋषि दत्तात्रेय को वरदान दिया था कि मैं स्वयं तीन अवस्थाओ मे भक्तों  के साथरहूँगा

  • जहाँ किसी की स्त्री का हरण हुआ हो
  • जहाँ किसी का किसी ने धन चुराया या कब्ज़ा किया हो
  • किसी ने किसी दूसरे की जमीन को अनधिकृत जप्त किया हो

उस समय मैं उस भक्त के साथ उस दुष्ट के विरुद्ध स्वयं विराजमान होता हूँ परंतु जब कोई अपनी शक्ति का दुरूपयोग या अनैतिक कर्म करे, तो मैंउस साधक का विनाश भी कर सकता हूँ। इसलिए इस लिए तंत्र विद्या का कभी दुरूपयोग नहीं करना चाहिए केवल बहुत जरुरी होने पर ही इस काप्रयोग करना चाहिए।

दत्तात्रेय तंत्र वशीकरण प्रयोग –

किसी भी बुधवार की रात को पीले वस्त्र पहनकर पीले रंग के आसन पर बैठें और आपका मुख उत्तर या पूर्व दिशा में होना चाहिए। अपने सामने एकचैकी पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर दत्तात्रेय यंत्र रखें और उस पर सिंदूर रखें। घी का एक दीपक जलाएँ और मूल मंत्र का रुद्राक्ष माला से 11 मालाका जप करें। जप के पूरा होने पर सिंदूर को एक चाँदी की डिबिया में संभालकर रख लें। अब जब भी आपको किसी व्यक्ति को अपनी बात मनवानी होया कोई काम करवाना हो, तो मंत्र का 11 बार जप करके चाँदी की डिबिया में रखे सिंदूर को अपने माथे पर लगाकर उस व्यक्ति के पास चले जाएँ, आपका कार्य अवश्य ही सफल होगा।

जिन महिलाओं के पति गलत संगत में पड़ गए हों, और उन्हें सुधारने के सभी उपाय विफल हो चुके हों, वे महिलाएँ इस सिंदूर को अपनी माँग में भरें याइसका टीका लगाएँ। उनका पति अवश्य ही सही मार्ग पर आ जाएगा। बस इस साधना को पूर्ण विश्वास और धैर्य के साथ सही प्रकार से विधिपूर्वककरें।

मंत्र – ‘‘ॐ श्रीं हृीं क्लीं ग्लौं द्राम दत्तात्रेयाय नमः’’

तंत्र को कामना की शीघ्रता से सिद्धि करने वाला कहा जाता है। भगवान् दत्तात्रेय को अवतार माना गया है। कलियुग में अमर और प्रत्यक्ष देवता के रूपमें भगवान् दत्तात्रेय का स्थान हमेशा प्रशंसित एवं प्रतिष्ठित रहेगा। दत्तात्रेय तंत्र देवाधिदेव महादेव शंकर के साथ महर्षि दत्तात्रेय का एक संवाद पत्रहै।

  • मोहन प्रयोग– ‘‘तुलसी–बीजचूर्ण तु सहदेव्य रसेन सह। रवौ यस्तिलकं कुर्यान्मोहयेत् सकलं जगत’’।

तुलसी के बीज के चूर्ण को सहदेवी के रस के साथ पीसकर तिलक के रूप में उसे माथे पर लगाएं। ऐसा करने पर उसको देखने वाला मोहित हो जाता है।

  • ‘‘हरितालं चाश्वगन्धां पेषयेत् कदलीरसे। गोरोचनेन संयुक्तं तिलके लोकमोहनम’’

हरताल तथा असगन्ध को केले के रस के साथ पीसकर उसमें गोरोचन मिलाएं तथा उसका मस्तक पर तिलक लगाएं तो उसको देखने से सामने वालाव्यक्ति मोहित हो जाता है।

  • ‘‘श्रृङ्गि–चन्दन–संयुक्तो वचा–कुष्ठ समन्वितः। धूपौ गेहे तथा वस्त्रे मुखे चैव विशेषतः। राजा प्रजा पशु–पक्षि दर्शनान्मोहकारकः। गृहीत्वामूलमाम्बूलं तिलकं लोकमोहनम।’’

काकडा सिंगी, चंदन, वच और कुष्ठ इनको मिलाकर चूर्ण बना लें और इससे बनी धूप से अपने शरीर तथा वस्त्रों पर धूप देने तथा इसी चूर्ण से तिलकलगाने पर राजा, प्रजा, पशु और पक्षी उसे देखने से ही मोहित हो जाते हैं। इसी प्रकार ताम्बूल की जड़ को घिस कर उसका तिलक करने से लोगों कोमोहन होता है।

  • ‘‘सिन्दूरं कुङ्कुमं चैव गोरोचन समन्वितम। धात्रीरसेन सम्पिष्टं तिलकं लोकमोहनम’’

सिन्दूर, केशर, और गोरोचन इन तीनों को आंवले के रस में पीसकर तिलक लगाने से लोग मोहित हो जाते हैं।

  • ‘‘सिन्दूरं च श्वेत वचा ताम्बूल रस पेषिता। अनेनैव तु मन्त्रेण तिलकं लोकनोहनम’’

सिन्दूर और सफेद वच को पान के रस में पीस कर नीचे दिए गए मंत्र से तिलक करें तो लोग मोहित हो जाते हैं।

  • अपामार्गों भृङ्गराजो लाजा च सहदेविका। एभिस्तु तिलकं कृत्वा त्रैलोक्यं मोहयेन्नरः।

अपामार्ग–ओंगा, भांगरा, लाजा, धान की खोल और सहदेवी इनको पीस कर उसका तिलक करने से व्यक्ति वांछित व्यक्ति को मोहित करने में सफलसहता है।

शिव शाबर तंत्र वशीकरण मंत्र

शिव शाबर तंत्र वशीकरण मंत्र

जय शाबर मंत्र अत्यंत शक्तिशाली एवं सिद्धि होते हैं इन मंत्रों के उच्चारण मात्र से ही व्यक्ति के सारे कार्य सिद्ध होने लगते हैं इनका प्रयोग बहुत ही प्रभावी होता है इन मंत्रों की सबसे बड़ी खासियत यह है की इनका प्रभाव किस चीज रहता है तथा इनकी कोई काट निश्चित नहीं होती ।

शिव शाबर वशीकरण मंत्र
शिव शाबर वशीकरण मंत्र

भगवान शिव को अनेक रूपों अनेक नामों से जाना जाता है तथागत देवों के देव महादेव कहलाते हैं अमावस्या के बाद हम लोग सावन का पूरा मां उन्हें समर्पित करते हैं । यह महा साधना के लिए उत्तम होता है इस मंत्र की साधना एक दुर्लभ साधना है जिसका प्रभाव साधक के जीवन में उत्पन्न होने वाली सारी समस्याओं से मुक्ति दिला देता है जो शिवभक्त है उसके लिए यह साबरमती शिवाशिष है

साधना विधि

सर्वप्रथम साधना प्रारंभ करने के पूर्व संकल्प युक्त होकर बैठे हैं एवं मंत्र जाप से पूर्व दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प करें मैं आमुख गोत्रीय आमुख के पिता का नाम  और  मैं अपने समस्त जी दुखों का नाश करने हेतु इस साधना का प्रयोग कर  रहा हूं जिन्हें गोत्र बताना होगा अपनी जाति का उच्चारण कर सकते हैं जिनके पिता का स्वर्गवास हो गया है वह वह अपनी मां का नाम भी ले सकते हैं या किसी साधक के मां पिता दोनों दुनिया में ना रहे हो तो वह अपने गुरु का नाम भी उच्चारण कर सकते हैं

इस शिव मानस पूजा में बाहरी वस्तु या पदार्थों का उपयोग नहीं किया जाता है इस मानक पूजा की रचना आदि गुरु शंकराचार्य की थी और इसका प्रभाव अन्य मंत्रों की अपेक्षा अधिक होता है इस पूजा की यह विशेषता है कि इसमें भक्त भगवान को बिना कुछ अर्पित किए बिना मन में अपना सब कुछ सौंप देते हैं

इस पूजा को प्रारंभ अमावस्या को करते हैं तथा पूर्णिमा तक मंत्र जाप कर उसे सिद्ध किया जाता है इस मंत्र सिद्धि में साधक को पवित्र होना अति आवश्यक है मंत्र सिद्धि होने के बाद आमुख शक्तिशाली हो जाता है एवं वह मंत्र में आमुख की जगह पर अपनी समस्याओं का  उच्चारण कर सकता है जैसे भूत बाधा, तंत्र बाधा, नौकरी प्राप्ति आने वाली बाधा, व्यवसायिक बाधा, पढ़ाई में बाधाएं, विवाह में बाधा , प्रेम में बाधाएं, अन्य बाधाएं इस मंत्र का जाप उत्तर दिशा की तरफ मुख करके करना चाहिए एवं आखिरी दिन देसी घी से निर्मित हवन सामग्री हवन करें  एव १०८ आहुति दे मंत्र पूर्ण सिद्ध हो जाएगा एवं सभी बाधाएं समाप्त हो जाएंगी

मंत्र:-

रत्नैः कल्पित मासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्यांबरं

नानारत्नविभूषितं मृगमदामोदांकितं चंदनम् ।

जाजीकचंपकबिल्वपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथा दीपं

देवदयनिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम् ॥ १ ।।

सौवर्णे मणिखंडरत्नरचिते पात्रे घृतंह पायसं भक्ष्यं

पंचविधं पयोदधियुतं रंभाफलं स्वादुदम् ।

शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूर खंडोज्ज्वलं

तांबूलं मनसा मयय  विरचितं भक्त्या प्रभोस्वीकुरु ॥ २

करचरणकृतं वा कर्म वाक्कायजं वा

श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम् ।

विहितमविहितं वा सर्वमेतत् क्षमस्व।

शिव शाबर वशीकरण मंत्र

इस वशीकरण मंत्र का प्रयोग सोमवार के दिन अपने आवास या मंदिर में करना चाहिए इस विशेष की पूजा से किसी को भी अपने वश में किया जा सकता है कथा उसके द्वारा अपने मनवांछित कार्य कराए जा सकते हैं वशीकरण अत्यंत शक्तिशाली होता है

साधना विधि

इस विधि का प्रयोग सोमवार के दिन से प्रारंभ करना चाहिए तथा पूजन से पहले ही आवश्यक सामग्री जैसे रुद्राक्ष की माला धूप दीप तंबोली आदि एकत्र करने एवं आसन लगाकर पूर्व की ओर मुख कर कर बैठ जाए तथा हाथ में गंगाजल लेकर चारों दिशाओं का शोधन करें इस विधि में शिवलिंग का पूजन करें तथा जिस को अपने वश में करना है उसका नाम लेकर शिव से प्रार्थना करें एवं रुद्राक्ष की माला से 21 माला जब करें या विधि आपको 11 सोमवार तक करनी होगी इसके उपरांत मुट्ठी में खाद्य पदार्थ या मिष्ठान लेकर किस को वश में करना है उसका नाम लेते हुए 11 बार इस मंत्र को पढ़ कर मुट्ठी में फूंक मारें तथा उस व्यक्ति को पिला दे जिसे आप अपने वश में करना चाहते हैं वह आपके वशीभूत हो जाएगा।

सावधानी

इस मंत्र का तथा इस साधना का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए ऐसा करने वाला व्यक्ति शिव के प्रकोप का पात्र बन जाता है और स्मरण रहे केवल भह्मपिशाचिनी या जिन्न नहीं है जिसे आप अपना दास बना कर आप अपना काम निकलवा सकते हैं वह शिव है जो अंतर्यामी है वह आप की आराधना का  भी जानते हैं और आपकी अंतरात्मा को भी ।

मंत्र :-

ॐ हँससोहं परमशिवाय नमः

शिव मंत्र सिद्धि

शिव तंत्र साधना अत्यंत दुर्लभ साधना है इस साधना का प्रारंभ अमावस्या मंगलवार होली या दिवाली में किया जाता है इस साधना से कार्य अत्यंत शीघ्र पूर्ण होते हैं तथा अत्यंत दुर्लभ होने के कारण अत्यंत कठिन साधना  है इस साधना में कोई भी त्रुटि नहीं होनी चाहिए।

विधि

इस साधना के लिए दीवाली या होली का दिन अत्यंत उत्पन्न होता है तथा आप यह साधना अमावस्या को भी प्रारंभ कर सकते हैं इस साधना के लिए सर्वप्रथम स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर आसन लगाकर बैठना चाहिए ध्यान रहे कि आपको काले वस्त्र तथा काला आसन प्रयोग में लाना है सर्वप्रथम मंत्रों का अनेकों बार उच्चारण कर रुद्राक्ष की माला से  जाप करके सिद्ध करना है तथा ऐसा करने से आपकी शिव पूजा सिद्ध हो जाती है एवं साधक के समक्ष तीन देवियां कृत्याय प्रकट होती हैं एक मरणकृत्या दूसरी मोहनकृत्या तीसरी उच्चाटनकृत्या इस समय आप को सावधानी बरतनी होगी तथा  अपने मस्तिष्क से भय को दूर रखना होगा ऐसा करने से आप कि यह साधना सफल होती है तथा हजारों मील दूर के कार्य मन की गति से संपन्न होते हैं सभी तरह की आत्माओं से जनित रोग बंधन समाप्त हो जाती हैं एवं उत्तम फल की प्राप्ति होती है।

मंत्र

ॐ  क्लीम क्लीम शत्रुणाम मोहये उच्चाटये मारये वचन सिद्धि मम आज्ञा पालय पालय कृत्याम सिद्धि फट ।

शिव तंत्र साधना

विधि

इस साधना के लिए स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर ईशान दिशा में मुख कर बैठना चाहिए और काले वस्त्र तथा काले आसन का प्रयोग करना चाहिए आप जिस स्थान में साधना कर रहे हो वह स्थान एकांत हो इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए सर्वप्रथम शिवलिंग के समक्ष बैठकर रुद्राक्ष की माला से गणेश की पूजा करें एवं लोहे की कीलों से अपने आसन के चारों ओर एक गोल घेरा बना ले तथा  ॐ रं अग्नि प्रकाराय नमः इस मंत्र का उच्चारण करते रहे।  किलो से बना घेरा आपकी अदृश्य शक्तियों से रक्षा करेगा एवं उसके पश्चात आप महामृत्युंजय मंत्र का उच्चारण कर अपने मस्तक में चंदन एवं भस्म का तिलक करें तथा 11 बार मंत्र का जाप कर साधना को सिद्ध करें या साधना एक दृश्य  दिवसीय भी हो सकती है और तीन दिवसीय भी पर आप अधिक से अधिक करने का प्रयास करें जिससे आपकी समस्त इच्छाएं पूर्ण हो एवं साधना के बाद बेलपत्र दूध जल चावल वस्त्र पुष्प लड्डू का भोग लगाकर मंत्र जाप करते हुए भगवान शिव पर चढ़ाएं या कार्य करते समय आपका मुख दक्षिण दिशा की तरफ होना चाहिए।

मंत्र

ॐ ह्ण ही हूं अघोरभ्यो सर्व सिद्धि देही देही अघोरेश्वरय हूं हीँ ह्ण ।।